गुरुवार, 16 मई 2024

संचार क्रांति का हिंदी साहित्य पर प्रभाव [आलेख ]

 227/2024 


 

 ©लेखक 

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्' 

 यह सर्वांश में सत्य है कि एक ओर जहाँ विज्ञान वरदान है तो दूसरी ओर अभिशाप भी है।वह विज्ञान ही है जिसके कारण संचार के क्षेत्र में क्रांति ही आ गई है।सहित्य क्या मानव जीवन का प्रत्येक क्षेत्र इससे अछूता नहीं रह गया है।आज विज्ञान ने वह सब कुछ प्रत्यक्ष कर दिखाया है,जिसके विषय में पहले कभी सोचा भी नहीं गया था। 

 यदि अतीत के वातायन में झाँक कर देखें तो पता लगता है कि जो चिट्ठियाँ पहले हफ़्तों महीनों की यात्रा करके अपने गंतव्य पर पहुँच पातीं थीं, अब उनका प्रचलन ही बंद हो गया है। अब तो मोबाइल से तुरंत कोई भी संदेश सम्पूर्ण विश्व में किसी के भी पास पहुँचाया जा सकता। पैसा भेजने के लिए धनादेश(मनी ऑर्डर)का प्रयोग किया जाता था। मनी ऑर्डर की निरर्थकता को देखते हुए सरकार को उसे बंद करने का निर्णय लेना पड़ा। अब कोई भी धनराशि भेजने के लिए ऑन लाइन अनेक साधन हैं,जिनसे कुछ ही पल में एक राशि दूसरे स्थान पर भेज दी जाती है।मोबाइल के आने के बाद टी वी, ट्रांजिस्टर, रेडियो, वीडियो, टेप रिकॉर्डर आदि सभी विदा हो गए।अब विश्व में हो रही किसी भी गतिविधि की जानकारी मोबाइल से कुछ ही पलों में कर ली जा रही है।

  मोबाइल न हुआ ,जादू की डिबिया ही हाथ लग गई मनुष्य के हाथों में। संचार क्रांति के इस युग में हिंदी साहित्य क्या विश्व का कोई भी साहित्य प्रभावित हुए बिना नहीं रहा है।जो पत्र -पत्रिकाएँ, पुस्तकें,बड़े -बड़े ग्रंथ पुस्तकाकार रूप में छपकर आते थे ,अब इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने उनका एक उचित समाधान प्रस्तुत करते हुए क्रांति ही ला दी है। 

   हिंदी साहित्य के प्रकाशन के क्षेत्र में हजारों पत्रिकाएँ और पुस्तकें ऑन लाइन छपकर छा ही गई हैं। साहित्य की संख्या की बात करें तो इतना कुछ लिखा जा रहा है,जिसे पढ़ पाना भी सम्भव नहीं हो रहा है। यदि गुणवत्ता की दृष्टि से विचार किया जाए तो उसे तो उठाकर एक कोने में रख देना पड़ेगा।जिस प्रकार दुकानों पर लिखा रहता है कि 'फैशन कर युग में गारंटी की आशा न करें।' वैसे ही संचार क्रांति के युग में उत्कृष्टता और गुणवत्ता को तो भूल ही जाना पड़ेगा।भला हो उस कोरोना काल का ,जिसने घरों में पड़े - पड़े लोगों को कवि और लेखक बना दिया। कोरोना काल की यह साहित्यिक उपलब्धि एक बीमारी से उत्पन्न हुई है,तो रुग्ण तो होगी ही।कोरोना काल के तथाकथित रचनाकारों को यह भ्रम हो गया है कि वे बहुत बड़े साहित्यकार हो गए हैं।यद्यपि वहाँ छंद के नाम पर शून्यता का सन्नाटा है।मुक्त काव्य के नाम पर जो कुछ लिखा जा रहा है,जो आजकल की ऑन लाइन कृतियों में देखा जा रहा है; उसका तो भगवान ही मालिक है।यद्यपि उसे श्रेष्ठता और गुणवत्ता की दृष्टि से मूल्यांकन किया जाए तो उसका स्थान कचरे का डिब्बा ही होगा।उधर उन नवागंतुकों का अहं देखिए तो पुराने कवि और साहित्यकार उनके समक्ष कहीं नहीं टिकते। वे अपने को किसी कालिदास ,सूर, कबीर,तुलसी,प्रसाद या पंत से कमतर मानने को कदापि तैयार नहीं हैं।यह भी आज की संचार क्रांति की देन है। जब बरसात होती है तो मेढ़क मछलियों के साथ-साथ घोंघे और सीपियाँ भी बरसती हैं। 

   सञ्चार क्रांति के युग का एक पहलू यह भी है कि जिन्हें स्वयं साहित्य की दो पँक्तियाँ भी लिखना नहीं आता ,वे संपादक बन गए हैं। इसलिए जो रचनाकार जैसी भी अनगढ़ कविता या लेख भेज देता है,उसे बिना कुछ देखे -परखे छाप दिया जाता है और प्रेषक की अपनी महत्वाकांक्षा की पूर्ति कर दी जाती है। फिर तो वह उस रचना का स्क्रीन शॉट लेकर अपने इनबॉक्स में दिखाते हुए फूला नहीं समाता।कुछ तथाकथित 'महापुरुष' अथवा 'महानारियाँ 'साहित्यिक संचार क्रांति में आग लगाए हुए हैं और सभी रचनाकारों को बड़े- बड़े सम्मानों से सम्मानित करते हुए उन्हें साहित्य के सिर पर बिठा रहे हैं।इससे वर्तमान श्रेष्ठ सहित्य कलंकित हो रहा है।यह सोचनीय है कि अपात्रों के हाथों में श्रेष्ठ साहित्य की छवि धूमिल हो रही है। 

 इस प्रकार हम देखते हैं कि संचार क्रांति के दोनों ही पहलू हैं।सकारात्मक और नकारात्मक।क्रांति तो अपना काम बखूबी कर ही रही है,किन्तु इसमें भी साहित्य के दलाल अपने काले हाथों से श्रेष्ठ साहित्य का मुँह भी काला करने में कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं।इस पर प्रतिबन्ध लगाया जाना चाहिए।सहित्य की इतनी छीछालेदर संभवतः पहले कभी नहीं हुई होगी। कुछ धनान्ध व्यवसायियों ने तो इसे कमाई का माध्यम ही बना लिया है और साझा संकलनों के माध्यमों से शॉल ,नारियल,स्मृति चिह्न और प्रमाण पत्रों का धुँआधार वितरण कर रहे हैं। धंधा अच्छा चल रहा है।यह भी आज की संचार क्रांति का एक अनुज्जवल पहलू है। 

 शुभमस्तु ! 


 16.05.2024●6.30 आ०मा० 


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कस्तूरी - परिमल जगी [ दोहा ]

 226/2024

     

[परिमल,पुष्प,कस्तूरी,किसलय,कोकिला]


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


                   सब में एक

सभी  दंपती  के  लिए,परिमल शुभ  संतान।

जननी   को  सम्मान  दे, होता  पिता महान।।

पति-पत्नी  के  मध्य  में, परिमल सच्चा प्रेम।

जीवन    हो   आनंदमय,   चमके जीवन-हेम।।


खिले पुष्प- सा  पुत्र  जो, हर्षित हों    माँ-बाप।

सत्पथ  पर  संतति   चले,  बढ़ता सदा प्रताप।।

मानव   के   सत्कर्म    ही,  देते पुष्प -   सुगंध।

संतति  को  शुभ    ज्ञान दें , बनें नहीं दृग-अंध।।


कस्तूरी  सद गंध - सा,मिले शुभद  यश  मान।

उच्च   शिखर  आरूढ़ हो, मानव बने   महान।।

कस्तूरी - सद्गन्ध    को,  हिरन  न जाने   लेश।

त्यों सज्जन  अवगत  नहीं, रख साधारण  वेश।।


किसलय  फूटे   वृक्ष  में,लाल हरी  हर  डाल।

आएं  हैं   ऋतुराज    फिर, तरुवर मालामाल।।

किसलय नन्हे  लग रहे,ज्यों नव शिशु के हाथ।

झूल   पालने  में  रहा,निज जननी के   साथ।।


ऋतु  वसंत  मनभावनी,करे कोकिला  शोर।

अमराई     में   टेरती,   हुआ   सुहाना   भोर।।

श्याम  कोकिला की सुनी, अमराई   में   टेर।

विरहिन  के  मन  टीस  ने, किया प्रबल अंधेर।।


                 एक में सब

लगी   कूकने कोकिला,  खिले पुष्प   रतनार।

कस्तूरी -परिमल जगी,किसलय की भरमार।।


शुभमस्तु !


15.05.2024● 8.00आ०मा०

दिनकर तीव्र उदोत [ गीतिका ]

 225/2024

            

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


उतर  रहे  जल - स्रोत, धरा  में  कम है   पानी।

दिनकर  तीव्र  उदोत, कठिन  है जान  बचानी।।


लुएँ  चलें  चहुँ ओर, जीव  जन व्याकुल   सारे।

दिखते  कहीं  न  मोर, कहाँ  हैं जलधर   दानी।।


नेताओं    को   घाम,   नहीं   लगता निदाघ  में।

ए. सी.  कार  ललाम,  मंच   पर भाषण   बानी।


भरे  देश    का  पेट , कृषक  की दीन दशा   है।

सब   करते   आखेट, जिन्हें  सरकार   बनानी।।


आश्वासन  से  भूख , नहीं   मिटती जनता  की।

गए   पेट   तन   सूख,  घरों  पर  टूटी   छानी।।


पाँच   वर्ष   के  बाद, निकल  बँगले से   आए।

लेना  मत   का  स्वाद,मची  है  खींचा - तानी।।


पंक    उछालें   नित्य,  परस्पर   नेता    सारे।

'शुभम्'  यही  औचित्य , न इनका कोई सानी।।


शुभमस्तु !


12.05.2024●10.00प०मा०

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उतर रहे जल-स्रोत [ सजल ]

 224/2024

              

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


समांत    :  आनी

पदांत     : अपदांत

मात्राभार : 24.

मात्रा पतन: शून्य


उतर  रहे  जल - स्रोत, धरा  में  कम है   पानी।

दिनकर  तीव्र  उदोत, कठिन  है जान  बचानी।।


लुएँ  चलें  चहुँ ओर, जीव  जन व्याकुल   सारे।

दिखते  कहीं  न  मोर, कहाँ  हैं जलधर   दानी।।


नेताओं    को   घाम,   नहीं   लगता निदाघ  में।

ए. सी.  कार  ललाम,  मंच   पर भाषण   बानी।


भरे  देश    का  पेट , कृषक  की दीन दशा   है।

सब   करते   आखेट, जिन्हें  सरकार   बनानी।।


आश्वासन  से  भूख , नहीं   मिटती जनता  की।

गए   पेट   तन   सूख,  घरों  पर  टूटी   छानी।।


पाँच   वर्ष   के  बाद, निकल  बँगले से   आए।

लेना  मत   का  स्वाद,मची  है  खींचा - तानी।।


पंक    उछालें   नित्य,  परस्पर   नेता    सारे।

'शुभम्'  यही  औचित्य , न इनका कोई सानी।।


शुभमस्तु !


12.05.2024●10.00प०मा०

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शनिवार, 11 मई 2024

मेरा बचपन :मेरा सेवासन (संस्मरण )

 223/2024 


 

 ©लेखक

 डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्' 

 बचपन, बचपन होता है।किंतु बचपन के कार्य और रुचियाँ व्यक्ति के आगामी जीवन का दर्पण होते हैं।बड़े -बड़े चोर,डाकू,अपराधी ,धर्मनिष्ठ, समाजसेवी, नेता आदि सभी प्रकार और प्रवृत्तियों के लोगों में उनके भावी जीवन का बीजारोपण बचपन से ही हो जाता है।मैं यह भी नहीं कहता कि किसी महानता का बीजारोपण मेरे बचपन में हो गया था। हाँ,इतना अवश्य है कि मेरी प्रवृत्ति बचपन से ही परिवार,समाज और अपने आसपास व्याप्त किसी प्रकार की कमी को सही करने और उसका उपाय ढूँढने की ही रही।यही कारण है कि जैसे ही मैंने होश सँभाला और दो अक्षर पढ़ना सीखा ,वैसे ही मेरी लेखनी अपना काम करने लगी। 

 कविताएँ लिखना तो मुझे उसी समय से आ गया था ,जब मेरी उम्र मात्र ग्यारह साल की थी।उस समय मैं कक्षा चार का छात्र था।उस जमाने में बच्चे आजकल की तरह ढाई तीन साल के पढ़ने नहीं जाते थे। मैं जब पढ़ने बैठा उस समय मेरी उम्र सात वर्ष की रही होगी।इसलिए चौथी कक्षा में आते -आते ग्यारह साल का होना ही था।लेखनी अपनी यात्रा पर चल पड़ी थी। 

 मेरा गाँव आगरा से उत्तर दिशा में टेढ़ी बगिया से जलेसर मार्ग पर तीन किलोमीटर और रोड से गाँव 1500 मीटर की दूरी पर पूर्व दिशा में स्थित है। उस समय टेढ़ी बगिया से जलेसर को जाने वाली सड़क कच्ची हुआ करती थी।मेरा विचार यह था कि यह सड़क पक्की होनी चाहिए।1975 में मेरे द्वारा एम०ए०करने तक वह कच्ची ही रही।उससे पहले उस समय की बात है जब उत्तर प्रदेश के माननीय मुख्य मन्त्री श्री हेमवती नंदन बहुगुणा हुआ करते थे।मुझे यह अच्छी तरह याद है कि उस सड़क को पक्का कराने के लिए एक प्रतिवेदन मेरे द्वारा उन्हें रजिस्टर्ड डाक से भेजा था। उस समय मैं किसी कक्षा का विद्यार्थी ही था। कार्बन लगाकर प्रतिवेदन तीन प्रतियों में लिखा गया और गाँव के लगभग सौ लोगों के हस्ताक्षर कराकर एक प्रति भेज दी।इसके साथ ही आगरा शहर ,यमुना नदी ,आगरा से जलेसर जाने वाली सड़क का नक्शा बनाकर भी भेजा। बाद में वह सड़क पक्की कर दी गई। मैं नहीं जानता कि यह सब कैसे हुआ। 

  1996 - 97 में मैं राजकीय महाविद्यालय आँवला (बरेली) में हिंदी विभाग में एसोसिएट प्रोफ़ेसर था।तभी आगरा के समीप आँवलखेड़ा में नव स्थापित राजकीय महिला महाविद्यालय खुलने की सूचना मिली।तभी उत्तर प्रदेश सरकार में माननीय मंत्री श्री धर्मपाल सिंह जी के सत्प्रयासों से मैंने अपना स्थानांतरण इसी कालेज में करा लिया। वहाँ मुझे राष्ट्रीय सेवा योजना के कार्यक्रम अधिकारी का प्रभार भी प्राप्त हुआ। और उसका प्रथम दस दिवसीय विशेष शिविर अपने गाँव में ही लगा दिया तथा अपने ही निवास पर सभी शिविरार्थिनीयों के ठहरने, खाना बनाने ,खिलाने आदि की सभी व्यवस्थाएँ कर दी गईं। 

 पचास छात्राएं नित्य प्रति गाँव में आतीं और फावड़े तसले लेकर गाँव से सम्बद्ध पक्के मार्ग तक दगरे को कच्ची सड़क में बदलने का कार्य करतीं।सड़क बनाई गई और सड़क पर सड़क से गाँव की दूरी अनुमान से ही 1200 मीटर लिख दी गई।विशेष शिविर के समापन समारोह का संपादन तत्कालीन क्षेत्रीय उच्च शिक्षा अधिकारी आगरा डॉ.रामानंद प्रसाद जी के कर कमलों द्वारा सम्पन्न हुआ। 

 उसी अवधि में कच्ची सड़क बन जाने के बाद मेरे मन में यह विचार कुलबुलाने लगा कि यह कच्ची सड़क यदि पक्की हो जाती तो कितना अच्छा होता। बस मैंने अपने प्रयास शुरू कर दिए और एक प्रार्थना पत्र बनाकर गांव की बी०डी०सी० के माध्यम से माननीय ग्राम्य विकास मंत्री श्री धर्मपाल सिंह जी को भेज दिया। कुछ ही महीने के बात थी कि पक्की सड़क निर्माण के लिए पी०डब्लू०डी० विभाग के पास आवश्यक धनराशि भेज दी गई और शीघ्र ही सड़क निर्माण का कार्य भी प्रारम्भ हो गया और मेरे द्वारा लगाए गए सूचना बोर्ड के अनुसार केवल 1200 मीटर सड़क का ही निर्माण किया गया। गांव से 300 मीटर पहले ही सड़क बनाना बन्द कर दिया गया। पूछने पर बताया गया कि 1200 मीटर के लिए ही अनुदान आया था। मैंने पुनः माननीय मंत्री जी को लिखा पढ़ी की तो गाँव के बाहर जंगल तक दो किलोमीटर तक पक्की सड़क बना दी गई ।इस प्रकार समाज और देश हित की भावना ने गाँव की उस सड़क को सम्बद्ध मार्ग से जोड़कर पूर्णता पाई।

  मेरे जीवन की यही कुछ छोटी - मोटी झलकियाँ हैं ,जो बड़े होने पर भी जीवन में एक सकारात्मक सोच बनकर देश व जनहित के लिए समर्पित रहीं। मुझ अकिंचन में आज भी वही जज्बा,जुनून और जोश कायम है,जिससे निस्वार्थ भाव से पूर्ण करते हुए जीना ही जीवन का लक्ष्य बन चुका है।काव्य और साहित्य लेखन भी मेरी इसी भावना को समर्पित कार्य हैं,जिसे आजीवन करने की यथाशक्य इच्छा पालकर अपने चिंतन को अग्रसर कर रहा हूँ। 

 भवन्तु सुखिनः सर्वे संतु निरामयाः। 

सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित दुःखभाक भवेत।।

 11.05.2024●11.45आ०मा० 

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शुक्रवार, 10 मई 2024

रसना [कुंडलिया]

 222/2024

                


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


                         -1-

रसना   रस -  आगार  है, मधुर  कसैला   तिक्त।

अम्ल लवण कटु हैं सभी,छः रस से अभिसिक्त।।

छ:  रस  से अभिसिक्त, सभी की महिमा  न्यारी।

मधुर  सभी   से   श्रेष्ठ, लगे सबको अति  प्यारी।।

'शुभम्'  बोलिए  बोल, नहीं  कटु करना    रचना।

लगे  हृदय    को   फूल, बनाएँ  सुमधुर    रसना।।


                          -2-

जैसा  इसका    नाम  है,  वैसा  ही हो   काम।

रसना रस  की  धार हो,  रसना  रस का धाम।।

रसना  रस  का  धाम,  हृदयपुर   में बस जाए।

मिले  शांति  विश्राम,सुने  शुभकर फल   पाए।।

'शुभम्'  यहीं  है  नाक,न  बोलें कड़वा   वैसा।

करे    सार्थक   नाम, काम  हो रसना   जैसा।।


                         -3-

जाती   लेकर   स्वर्ग   में,  करे   नरक निर्माण।

रसना  जिसका  नाम  है,  करती  है म्रियमाण।।

करती   है   म्रियमाण, जगत  को यज्ञ   बनाए।

हानि  लाभ  यश  मान,  सभी का बोध  कराए।।

'शुभम्' सुने पिक बोल, हृदय कलिका मुस्काती।

कटु  कागा  के  शब्द, सुनी  कब वाणी  जाती।।


                         -4-

वाणी  रसना   जीभ  ये, शुभकारी  बहु    नाम।

सदा  विराजें  शारदा,  करती  हैं निज    काम।।

करती  हैं  निज  काम, काव्य  की गंगा  बहती।

गहे    लेखनी    हाथ,   शब्द  भावों में    रहती।

'शुभम्'  न   सबको प्राप्त,शारदा  माँ कल्याणी।

रसना  से  रसदार,   सदा  बहती  शुभ   वाणी।।


                         -5-

रसना   पर  माँ  आइए, कवि  की यही  गुहार।

रक्षा      मेरी    कीजिए,   माँ   भारती   उदार।।

माँ  भारती  उदार , जगत  हित निकले  वाणी।

चींटी  गज   नर  ह्वेल, शुभद  करना कल्याणी।

'शुभम्' कर्म फल दान, किया माँ ने कर  रचना।

हो न  लेश  भर हानि, शारदे कवि की   रसना।।


शुभमस्तु !


10.05.2024●9.15आ०मा०

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गुरुवार, 9 मई 2024

टूटकर जुड़ने की [ अतुकांतिका ]

 221/2024

         

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


टूटकर

जुड़ने की गाँठें

पूर्ववत होतीं नहीं।


दूरियाँ 

बनती दिलों में

जब विषमता का जहर,

आँच - सा जलता

यकायक

रात - दिन आठों प्रहर।


आदमी ही 

आदमी का

शत्रु बनकर आ खड़ा।


स्वार्थ आड़े

आ रहे हैं

स्वार्थ की सत्ता सदा,

हो रहे हैं

गैर अपने

हाथ में खंजर गदा।


'शुभम्' शुभता

जानता कब

पंक में सिर तक गड़ा।


शुभमस्तु !


09.05.2024●3.45 प०मा०

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...